इस बात पे चोर करार किया गया,
August 10, 2022
सब कहानी अपनी सी लगती थी।
थककर निकल चला हूं अनजान राहों पे
August 7, 2022
दुआ करो, मुझे कोई भी फिक्र न हो
काश मिल जाए रास्ते में कोई अजनबी
बात हो, मगर कोई उनका जिक्र न हो
मरीजों के वास्ते ही सही, इक इल्जाम उनके खिलाफ हो
August 6, 2022
बच जाएंगे बहुत सारे रकीब, अगर उनका ईलाज हो
कोशिश करता रहता हूं कि कोशिश न करू
August 6, 2022
बस इतनी कर लूं कोशिश, कोशिश न लगे
जरूरत बन पाओ तुम मेरी, यह जरूरी तो नहीं
August 6, 2022
सूनी है ज़िंदगी मेरी शायद, मगर अधूरी तो नहीं
तुम्हारी आंखों से उनको हुआ इशारा समझते है
August 4, 2022
जूठे तो नही हैं हम मगर, जूठा वादा समझते है
बतला दूं मैं तुम्हें उन चाहने वालो की हकीकत
तुम्हे चांद कहकर खुद को सितारा समझते हैं
मैं खुदको ज़मी, तुम्हे आफताब समझ बैठा
August 4, 2022
पूर्ण था, जिसे मैं अल्प विराम समझ बैठा
सुना है छोड़ जाएगा हर कोई किसी न किसी दिन,
August 1, 2022
मैं बुरे हालात के थकने का इंतज़ार कर रहा हूं।
माना जूठा हूं, मेरा लिखा बीता नहीं है मुझपे शायद
July 31, 2022
मगर अब तुम्हारे सिवा कायनात का हर शख्स मेरा है
अब भंवरे तितलियां भी नही गुनगुनाते मेरे आसपास,
July 31, 2022
बिछड़ते वक्त कम से कम मेरी खुशबू तो छोड़ जाते।
नज़र फेर लेते है कहकर, उनसे भुलाया नही जाता,
July 30, 2022
मुर्दा शख्स से भी कभी आंख चुराया नहीं जाता।
सोचा था रखूंगा हर दर्द का हिसाब उनके खाते में,
मगर उनसे पुराना कर्ज़ ही चुकाया नही जाता ॥
सोचा था दुनिया को भी बतलाएंगे अपने बारे में,
July 30, 2022
मगर अब सोचता हूं, बताने में अब रखा क्या है ।
जलाकर कैसे जाती वो आग, हम खुद राख जो ठहरे।
May 24, 2022
वो समझे करिश्मा है खुद रब का, हम पाक जो ठहरे।
बेमतलब लगती रही बाते तुम्हें हमारी,
May 4, 2022
बाते बनाए रखने का झरिया ढूंढ रहे थे।
छोटा झील सा दिल लेकर आए थे हम,
मगर तुम भला कोई दरिया ढूंढ रहे थे॥
झेलता रहा मैं पत्थर बिना कोई शिकायत
April 16, 2022
कभी सागर था, अब गहराइयां छीन गई।
इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता
April 14, 2022
आदम कभी अपनी खुदगर्ज़ी नही खोता।
रोता है पंछी अपना घर बिखर जाने पे,
वह आंसु पेड़ के कटने का नही होता॥
आज भी सफर में कुछ कहानी बनेगी, किताबें मैं अपनी फिर घर भूल गया हूं। खामोशियों में चीख सुनने लगा हूं, शायद अंदर ही अंदर चिल्ला रहा हूं॥
March 24, 2022
कोई जला गर्भ के लिए, कोई जन्मदाता के लिए,
December 30, 2021
कोई रोशनी देने सबको, और कोई खुद के लिए,
कोई जला बिन कारण, कोई सिर्फ जलाने को,
क्योंकि गर जला नहीं वह मिट्टी है, दिया नहीं।
Just because most or some people have it,
December 27, 2021
doesn’t mean you can’t appreciate it.
What a generation we are!
Instead of telling your parents you’ll be there for them whenever they need you, you teach them how to do things because you won’t be working from home your whole life.
November 20, 2021
दिल में छुपाए रखा है कुछ जो कहने से डरता हूं।
October 9, 2021
अंजाम उसका सोच अंदर ही अंदर मरता हूं।
बारिश का मेघधनुष समझ रहे हो मुझे लेकिन,
सूरज हूं प्रज्वलित, कैसे बताऊं मैं भी जलता हूं॥
उनकी आंखें, लबों और सूरत पे दिल जो आ जाए,
October 7, 2021
उस प्यार को झूठा, जिस्मानी कहते क्यों है लोग?
दिल और दिमाग वाला भी तो जिस्मानी ही हुआ,
और बिन जिस्म की रूह से तो डरते है लोग।
खामोशी का मतलब वह हमारा एतराज समझ बैठे,
October 4, 2021
कमबख्त दिल उन आंखों में बस फिसलता चला गया।
क्या करेगा जान पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान, पौधे को गमले तक ही सीमित रहना है।
Sep 19, 2021
पानी के बहाव सा था रिश्ता अपना, अंत तक आते आते थम सा गया है।
Sep 15, 2021
गलतियां ही गलतियां दिखने लगी है, एहसासों को बर्फ जम सा गया है॥
कोई मंजिल के लिए रास्ता बदलता है, कोई रास्ते के लिए मंजिल।
Sep 6, 2021
किसी के लिए बदल सको जब दोनो, समझ लेना मिल गए है दिल॥
झुर्रियां भी खुबसूरत लगती है जब आती है मां की याद,
Sep 3, 2021
खुबसूरत नक्शा छोड़ जाती है नदियां सूख जाने के बाद।
इक मंज़िल पाकर अगली ढूंढने ही लगते है लोग,
Aug 28, 2021
हमराही की तलाश थी, हम उनकी मंज़िल निकले।
कौन है जो कहते है कहानियां सच नही होती,
Aug 24, 2021
लोग अब पौधे को पेड़ बनता भी नही देख पाते क्या ?
जरूरी नहीं की धनुष हर बार दिखे आसमां में,
Aug 24, 2021
कुछ लोग बारिश में फिर भी बस भीगते रहते है।
हमें तुमसे भला अब कोई शिकवा कैसा, राहगीर कभी कुत्तों को काटा नही करते। बाइज्जत बरी भी कर देते हम तो मगर, इज्ज़त को रुसवा भी किया नही करते॥
Aug 18, 2021
मंज़िल लेकर जो निकला, बीच रास्ते ही खो गया।
Aug 14, 2021
बेफिक्र घूमने चला जब, सफर मुकम्मल हो चला॥
अब हमसे चला नहीं जाता, छांव ढूंढना जरूरी है।
Jul 24, 2021
छाले भी तो मिले है, बादल से बादल तक चलते॥
समंदर पर चल देते खुदा समझ बैठे थे हम तो उन्हें,
Jul 12, 2021
वह मेरे अल्फाजों की गहराई ही नहीं थे समझे ।
छोड़ गए कहकर, किसी दोस्ती के काबिल ही नहीं है हम,
Jul 12, 2021
कैसे बतलाता उन्हें, तन्हाई बचपन से ही दोस्त है हमारी।
अब हर बात समझाई जाए यह भी तो जरूरी नहीं,
Jul 12, 2021
जतानी हो वो हर इक बात कही जाए, जरूरी नहीं।
अब नया तो भला क्या ही लिखूं मैं, आज खबर इक आई थी,
Jul 11, 2021
नई सुरंग मिली है घर से थोड़ी ही दूर।
अमृत इकठ्ठा करता चला था कुछ नारियल की तरह,
Jul 11, 2021
टूटकर बह गया जब पानी, पानी पे बेराह बहता मिला।
“मां, भंवरा कितना बुरा है ना, कभी कभी काटता भी है हमें और फूल से अमृत चुराकर उसे मुरझा देता है।”
“पहले मेरी बात सुन ले, आज खेलने जाए तो पेड़ पे पके आम दिखे तो तोड़के ले आना, वरना बिगड़ जाएंगे। और रास्ते में कुत्ते पीछा करे तो पत्थर मारकर भगा देना। याद रह गया ना, भूल मत जाना। … हां, अब बोल, क्या पूछ रहा था?”
Jul 11, 2021
कसूर यह था कि राह ढूंढने में गवां दी ज़िंदगी,
Jul 8, 2021
चलता रहता अगर, आज इक नया रास्ता होता॥
गलतियां खुद की भूलाकर रूह अब बेपरवाह सोती है।
Jun 6, 2021
अब तो मेरी खुदगर्जी भी लोगों की भलाई में होती है।
सुना था रंगों की नगरी में कत्ल या तस्करी नही होती।
Jun 5, 2021
वह दवाईयां रंगीन थी, जो ज़िंदगी के रंग चुरा ले चली॥
नाकामी का मतलब ये तो नहीं की कभी भी काम नही होगा।
Jun 2, 2021
बारिश में पहले भी भीगे हो तो क्या कभी जुकाम नही होगा ?
ज़िंदगी की नाकामियों ने कुछ इस तरह घेरा था।
Jun 2, 2021
लगी थी आग दिल में, फिर भी सिर्फ अंधेरा था॥
हंसी के मुखौटे लिए बैठे, छोटी इक खुशी को तरसे ।
May 30, 2021
समंदर किनारे चातक सोचे, काश इक बुंद तो बरसे ॥
अब बारिश खत्म होने ही वाली है, चलो थोड़ा नमी भर ले।
May 25, 2021
कुछ ज्यादा ही मुकम्मल है रात, चलो चांद की कमी भर ले॥
कल तक बात आवाज़ की थी,
Apr 26, 2021
आज सांसें ही खामोश हो चली।
खुशी की बात हंसकर कह पाओ यह जरूरी तो नहीं,
Apr 25, 2021
क्या पता उसके पीछे छिपा कोई दुखद समाचार हो,
कोई बेड नही था, पर अभी एक खाली हो जाएगा,
उस परिवार को बताऊं कैसे, जिसमें मरीज़ चार हो?
अपनों को देने की चाहत में, अपना वक्त बर्बाद कर बैठे,
Apr 24, 2021
और जो अपने थे, वह वक्त कहीं और ही दिए बैठे थे।
कभी कभी सोचता हूं, इंतकाम के वक्त क्या पूछा जाएगा?
Apr 4, 2021
दुनिया को क्यों समझ नही पाया या समझा क्यों नही पाया?
सो गया जग सारा, कुछ अरमान बाकी है।
March 20, 2021
कर चुका हूं सब हवाले, सिर्फ जान बाकी है।
शायद मैंने कभी बताया ही नहीं जो जताना चाहता था,
Mar 17, 2021
शायद जताया नहीं जो दिल मेरा बताना चाहता था ।
समझने लगा था कि तुम हो अब सिर्फ मेरे हिस्से में,
कमबख्त भूल गया था कि लोग जूठा तक खा लेते है।
परिचय तो क्या दूं मेरा, नाम पहले से बदनाम निकला।
Mar 6, 2021
समझा ज़िंदगी ही है बेरंग, मैं खुद रंग श्याम निकला॥
आज हमारी ही गली को वैसे उजड़ते देख लिया,
Mar 5, 2021
जिन गलियों से दूर से ही मुड़ जाया करता था।
चलो आज ज़िंदगी ने यह भी सीखा ही दिया,
जिस तजुर्बे के न होने का गुमान किया करता था॥
चलो, इक और ज़िंदगी बर्बाद कर चला,
Feb 16, 2021
इक और बददुआ अपने नाम कर चला ।
खुद की गलती का ग़म खुद क्यों सहे,
वक्त को बुरा कहकर अपना काम कर चला ॥
तुम ठहरे इश्क़ का समंदर, मैं नन्हा बादल प्यार का,
Jan 20, 2021
तुम्हें महसूस तक न होगा, मेरा तुम पर बरस जाना।
ज़िंदगी छीन गई मच्छर की, और मेरी,
Jan 20, 2021
कोई और था जो ज़ख्म दे गया था।
शायद तुम्हे उतना नहीं चाहता, जितना कहानियां चाहता हूं।
Jan 20, 2021
मगर जानता हूं तुम्हें तुमसे ज्यादा, क्योंकि कहानियां जानता हूं।
जीवन बचपन की पृष्ठभूमि में कर्म से उभर रहा चित्र होता है ।
Jan 18, 2021
छोटीसी भूल छुपाने में चित्रकार अक्सर तस्वीर बिगाड़ लेता है॥
गिरते ही रहते है अब तो, मोबाईल हो या फिर दिल,
Jan 17, 2021
छोटी सी खरोच भी पहले आह निकाल जाती थी ।
पूरी दुनिया का साथ पाने का सपना था बचपन में,
Jan 16, 2021
खुद की नींद और काया भी साथ नहीं जुटा पाया हूं।
नसीहत गिरते पत्थरो को रुकने की, मूर्ख ही देता है,
Dec 27, 2020
बारिश की बूंदों को भी अपने अंजाम का पता होता है।
दो मिनट बताकर आते ही नहीं, कहीं तुम्हारा नाम भी नींद तो नहीं?
Dec 8, 2020
अरे खुद ही बुला लो, देखो कि कब आती है,
आयी है जब भी, अपनी फ़ुरसत से ही आती है ।हर बार कोई नया किस्सा, नई कहानी,
Dec 8, 2020
या फिर वाकया पुराना, नयी जुबानी ।
वह सज धज के जब चली आती है,
खयाल होती है, सोच बन जाती है ॥
पत्थर दिल होना तो कोई बहाना नहीं है इश्क़ न करने का,
Nov 25, 2020
हम वो है जो पत्थर को भी मूरत बनाकर रखते है।
गुलदस्ता और कागज़
आख़री अलविदा दोबारा कहने का मौका, हमें भी तो कभी दे देना ए ज़िंदगी,
Nov 25, 2020
पेड़ को मरने के बाद भी कभी, फूलों से मिलना नसीब होता है।
आज सूंघते तक नहीं जो हमें अपनी दवाई माना करते थे,
Nov 19, 2020
हम पुराने हो चुके या अब ज़रूरत नहीं, बता देते तो अच्छा होता।
शायद जुदाई भी सह लेता था यह दिल,
Oct 28, 2020
गर वह सपने, यादें और वादें न दिए होते।
माफ़ी तो अब क्या मांगुं, कोई फ़ायदा नहीं, तुम्हारी ज़िंदगी में आना ही नहीं चाहिए था। सच है, जिन्हें कहां जाना है पता नहीं होता, दूसरों के रास्ते में भी रुकावट बन जाते है॥
Oct 19, 2020
हज़ारों पकवानों और पैसों से भी मिटती ही नहीं,
Oct 10, 2020
जो किस्सों और सपनों से मिट जाया करती थी कभी,
दोस्ती ही थी पेट भर जाता था जिससे,
मिट गई ख़ुद, भूख़ मिटाने के इस सफ़र में।
तरसा मैं जिंदगीभर, ठुकराकर जो मेरे हक का नहीं था।
Sep 19, 2020
तुम बारिश की तरह आए, नदियों से पानी चुरा कर ॥
मेरा शीशमहल देख भी अब्बू के चेहरे पर खुशी न दिखी,
Sep 11, 2020
काश अपने देश में ही कोई अफसाना सुना दिया होता।
बचाए रखा हमने उन को अतीत के अंगारो से,
Aug 30, 2020
और वो समझे, मेरी ज़िंदगी में कोई आफताब नहीं।
कठिन गर न होता ज़िंदगी का वह रास्ता, कैसे जानता की मुमकिन है और रास्ते कई। और गर नाकाम न होता उन हर रास्तों पर, कैसे जान पाता कि पहला ही था सही॥
Aug 30, 2020
मुखौटे का इल्ज़ाम न रखो, नकल ही असलियत है मेरी।
Aug 30, 2020
खुद को ढूंढ़ने की कोशिश में, निकली है ज़िंदगी मेरी॥
न जाने किस बात का गुरूर रखते है कुछ लोग,
Jun 26, 2020
मौत भी ज़िन्दगी में इक बार गले लगा जाती है।
शायद किसी तरह ढूंढ़ ही लेता, मालूम होता गर कि खोया क्या है ।
Jun 7, 2020
कौन मालिक है नहीं जानता, कैसे बताऊं क्या खोजा, चुराया क्या है ॥
समझाता मैं तुम्हें फर्क घाव और ठोकर का, काश तुम पत्थर न होते।
Jun 5, 2020
तेरी बारिश में आख़िरी बूंद तक भीगा,
Jun 5, 2020
मैं मासूम कागज़ उसे प्यास समझ बैठा।
अब तो बहुत ज्यादा खुशी से भी डर लगने लगा है,
Jun 4, 2020
चांद को ग्रहण सिर्फ पूर्णिमा को लग सकता है।
फासला था काफी, नज़र थी रास्ते पे, मंज़िल की जो तलाश थी,
Jun 2, 2020
मुड़कर न देखना मुनासिब होता, देखा तो बस लाश ही लाश थी।
आज़ाद होने के लिए आबाद होना जरूरी तो नहीं,
Jun 1, 2020
मैंने अक्सर अमीरों को कमरों में बंद देखा है ।
ज़िंदगी कुछ और होगी गर चलता रहा,
May 31, 2020
मैं बस पुरानी बातों को याद करता रहा,
रात मुझे अपने आगोश में ले चुकी थी,
पर मैं बस नींद का इंतज़ार करता रहा।
मंज़िल की उतनी परवाह नहीं, इक दिन मिल ही जाएगी,
May 29, 2020
ख्वाहिश इतनी है, पैरों तले खून का कतरा भी न हो।
अब मतलबी मत समझ लेना तुम मुझे, खुदा गवाह है,
May 28, 2020
कुछ मतलब के बहाने मेरा बारबार आना, बेमतलब था।
अब मेरे पैर जमीं पर चलने के काबिल नहीं,
May 28, 2020
इश्क़ की सीढ़ियों से गिरता जो आ रहा हूं ।
और गिरना मुमकिन न रहा तब समझा,
अम्मी ने फलक पर बिठाए रखा था ॥
जाल-ए-अल्फ़ाज़ तुम्हारा मैं समझ न पाया,
May 28, 2020
तुम मेरे चांद थे और मैं यकीनन इक सितारा ।
कोई पत्थरों के लिए देश परदेश भटकते हैं, पत्थर पर सिर रख हम खाली पेट सोते हैं, घिन्न आती थी जिन्हें हमारे अस्तित्व मात्र से, आज चार कंधों के लिए भटकते देखा है।
May 3, 2020
बचपन से किताबों में खुद को देखने की तमन्ना थी,
Mar 8, 2020
शायद जानता था, खुदको खुद से न खोज पाऊंगा ।
अब खुद ही दीवारें ख़राब कर लेता हूं,
Mar 1, 2020
लिख जाते थे उन्हें अब सफाई पसंद है।
हज़ारों लोगों की जिंदगियां मिलकर बनी थी वह नाव,
Mar 1, 2020
इक तूफ़ान में तबाह हो गई, कई और जिंदगियों के साथ ।
पता तो मैं अपना क्या बताऊं, घुमक्कड़ हूं, लापता हूं,
Mar 1, 2020
बचपन का पता दे देता हूं, जहां अब लौट नहीं सकता।
जिंदगी की किताब में जो पन्नें खाली छूट जाते हैं,
असल जिंदगी उसी में कहीं छूपी रह जाती है।मैं खुली किताब हूँ शायद।
Mar 1, 2020
वक़्त को भी न जाने क्या क्या दिखलाना बाकी है,
Feb 28, 2020
जूठा पानी न पीने वालों ने जूठी कसमें खा ली ।
सिर पर बिठाया करते थे कभी,
Feb 24, 2020
और आज मैं बैठी हूं इक कोने में,
आइने पे चिपकी किसी बिंदिया की तरह।
किसी की पेंसिल खो गई है सुनकर रो देता था,
Feb 22, 2020
अब मौत की ख़बर चाय के साथ पीता है ।
मगर “बेटा, लगी तो नहीं” जो पूछ लिया,
यक़ीनन आंसूओं की नदियां बह जाएगी ॥
समझना चाहता रहा सबको, और गलत समझा गया है मुझे,
Feb 22, 2020
मैंने बस सबकी बात सुनी थी, बेगैरत समझा गया है मुझे ।
कहानियों की खोज में महफूज़ था, गुनहगार माना गया है मुझे,
खुद को अब क्या समझाऊं, हूं नहीं वही समझा गया है मुझे ॥
बारिश
शायद दीवारों के बाहर भी दर्द दिख रहा होगा,
तभी सफर पर निकले बादल भी थम गए होंगे,
मेरे हालात जान उनकी भी रूह रो दी होगी,और उनके आंसू भी खिड़की के बाहर से ही,
Feb 18, 2020
मेरी बदकिस्मती देख, मिट्टी में मिल गए होंगे,
मेरी वह सारी अधूरी ख्वाहिशों की तरह।
मोहरे पर मोहरा पहनते रहो, मगर मैं हालात समझता हूं ।
Feb 16, 2020
चाहे जैसे भी छुपा दो अल्फाजों में, मैं बात समझता हूं ॥
शायद हम नासमझ थे, या समझा न पाए उन्हें,
Feb 15, 2020
भीगे थे उनके लिए, छींकते भी रहे कुछ दिन तक,
और वह उस सन्नाटे को कुछ और नाम दे आए ।
हुकूमत भी कुछ आसमां जैसी होती है,
Jan 20, 2020
सिर्फ बारिश के वक्त पर चिल्लाती है ।
आसमान में होने का इतना क्यों है गुरूर,
Jan 20, 2020
हर ज़मीं किसी ना किसी आसमां में है ।
मैं क्यों अपने आप को लोगों के नजरिए से तोलुं ?
Jan 20, 2020
अमरूद के पेड़ को आम के पेड़ में बदलते देखा है?
फासला बनाए रखा सोचकर कि फासले कुछ और न बढ़ जाए।
दोहराता रहता हूं मैं गलतियां कि आदत कहीं वह छूट न जाए॥आदतें, फासले और गलतियां, बिखरे पेड़ की आख़िरी टहनियां ।
Jan 19, 2020
वैसे तो बह जाना ही स्वभाव है बूंद का,
Dec 18, 2019
आज पीले पत्ते पर जो गिरी, ठहर गई ।
बक्सा ही आखिरी मुकाम है मालूम है लेकिन,
Dec 11, 2019
लोग अक्सर किसी ना किसी बक्से में खोए रहते है।
शाम हुई,
अंधेरे को बढ़ता देख मैंने आंखें बंद कर दी।आंखें खुलती रही बार-बार, अंधेरा गाढ़ा होता रहा ।
Dec 1, 2019
काश शाम को ढूंढ कर लालटेन जला दी होती ॥
कोलेज में हररोज सिर्फ नाश्ता और किताबें लेकर जाता था।
Dec 1, 2019
आखिरी दिन बस्ता जो खोला, सिर्फ ज़िम्मेदारियां निकली ॥
अम्मी हमेशा मेरी चीजों को इधर-उधर रख देती है।
आज जब सालों बाद घर लौटा तो देखा कि
मेरी किताबों की जगह ईक अनजाने,
थोड़े पुराने दवाईयों के बक्से ने ले रखी है।मेरी जगह अब भी खाली है॥
Nov 30, 2019
समंदर भला उछलता क्यों न रहे,
मछलियां गुदगुदी जो करती हे,उन मछलियों जैसी मेरी ख्वाहिशें ।
Nov 8, 2019
शायद यह सच है कि तुम, अपनी सोच से सीमित हो । सोचना यह भी जरूरी है, वह किस बात से सीमित है? बंद कमरे में कैद रह कर भला, दुनिया तुम कैसे समझ लोगे?
Oct 19, 2019
ज़िंदगी भर ग़म में रहने का इंतजाम किए बैठे ।
Oct 13, 2019
चराग़ थे, और ख्वाहिशें सितारों की लिए बैठे ॥
उस १०x१० के कमरे में, न जाने कितनी कहानियां दब गई।
कुछ बीती हुई, कुछ बनती हुई, और कुछ जो बन न पाई ।कहानियां जो तुम्हारा इंतज़ार देखती रही अंत तक,
Oct 9, 2019
उनके मौत के जिम्मेदार अगर तुम नहीं, तो फिर कौन?
ज़िंदगी में ना जाने क्या मैं ढूंढ़ रहा हूं।
Oct 8, 2019
देख नहीं पा रहा या आंखें मूंद रहा हूं ॥
बदलाव चाहिए तो कैसा, नहीं जानता।
पूरी ज़िंदगी जो कलश का बुंद रहा हूं॥
ख़ुद का ख़ुद से मिलना इतना भी नामुमकिन नहीं,
Sep 22, 2019
बारिश की बूंदे क्या सागर से कभी मिलती नहीं?
कतरा कतरा मैं जुटाता चला, किसी और को लौटाने को ।
Sep 19, 2019
लौटा रहा भी हूं तो उसे, जो रहा है पाल सब दरिंदो को ॥
ओ नादान ज़िंदगी, तुझे अब मैं क्या समझाऊ ?
Sep 14, 2019
तू जिससे प्यार करती है, वह वक़्त
बहुतों को तबाह कर चुका है |
ऊंचाईओ को छूने वाले किसी के सहारों पर नहीं पलते ।
Jul 29, 2019
औरों की छांव में बढने वाले पेड़ अक्सर बौने रह जाते है ॥
उड़ना तो नहीं भूले मगर
Jul 23, 2019
अब डर लगता है |
आदम जात बादलों को भी
पानी के लिए गिरा दिया करते हैं ।
माना थोड़े अजीब है हम, शायद थोड़े बेवफ़ा भी,
Tinder के ज़माने में, हर इतवार
Jul 23, 2019
किताबों की दुकान में अपना प्यार खोजने जाते हैं।
तन्हाई भी मेरी मच्छरदान सी निकली,
होनेवाले हादसों से तो बचाती रही,
Jul 21, 2019
मगर हो चुके है उनको भूलने भी ना दिया।
परिंदे की तरह खुलकर आसमान में उड़ने के मशवरे देने वालों,
Jul 6, 2019
कभी उससे भी पूछ लो कि उसके सपने, उड़ने के ही थे क्या ?
इक समान क्यों ही न हो यह कश्तियां,
मंज़िले हर इक की कुछ और ही रहेगी ।कुछ साथ के बाद, रास्ते अलग हो जाएंगे शायद,
Jun 9, 2019
मगर कहानियां सुनाती अंत में यहीं पर मिलेगी ॥
काफी वक़्त बाद मैंने अपने घर में पैर रखे।
May 19, 2019
एहसास हुआ कि घर की व्याख्या,
दिल बहलाने बदल रखी थी कुछ सालों से।
शायद अभी थोड़ा और वक्त लगेगा, चलो वक्त की रवानी सुनाता हूं ।
किस्से तो कहीं सुने होंगे, पर आज नई ईक तरफा प्यार की कहानी सुनाता हूं ॥मुझे खींच कर कैसे ले गई, उस जवानी की शैतानी सुनाता हूं ।
Apr 14, 2019
कभी जो मेरा हुआ करता था, मासूम बचपन की कहानी सुनाता हूं ॥
जिंदगी की आख़िरी सांस कुछ नहीं मेघधनुष के बाद का स्याह रंग है ।
Mar 31, 2019
कयामत भी कुछ नहीं, हकीकत और तुम्हारे सारे मलाल के बीच छिड़ी जंग है ॥
इंतकाम, मेरे सारे ईम्तिहान जैसा ही रहा ।
Mar 16, 2019
आनेवाला कुछ और था, मैं कुछ और पढ़ता रहा ॥
दादी की जो कहानियां सुनने मैं पूरा दिन अच्छा बना रहता था ।
Mar 9, 2019
शायद वह राक्षस मैं ही था, जो सपनों को कैद रखता है ॥
जन्मदिन का मातम हर साल होना चाहिए?
ज़िंदा होने का भी मुझे मलाल होना चाहिए?दुनिया में रंग भरने की नाकाम कोशिश के खातिर,
Feb 25, 2019
चाहता हूँ की कफ़न भी हरा लाल होना चाहिए।
मैं अहमियत समझकर भी नज़ाकत नहीं समझता,
जानकर भी न जानने की मेरी कला नहीं समझता ।जब तक थोड़ा न रहे वक्त की ताकत नहीं दिखती,
Feb 25, 2019
कुछ नहीं कर जो पाता हूं मैं ख़ुद नहीं समझता ॥
ख़ुदा से भला क्या मांगना, गर सोचो तो तरस आता है ।
Feb 24, 2019
जब दुनिया रास नहीं आती, तब आदमी जहां बनाता है॥
मैं ठहरा आग सा, तू पानी सी
Feb 24, 2019
अपनी कहानी ख़त्म अपने-आप हो गई ।
मैं आग सा ही रहा मगर तू भांप हो गई ॥
आज मैं बग़ीचे गया था जहां हम झूला करते थे।
Feb 18, 2019
वह टहनी भी जुदा हो गई है पेड़ से, कुछ हमारी तरह॥
शौक़ था दफ़्तर के कुएं में कूदने का।
अंजाम फिर वही हुआ,
Feb 14, 2019
मैं उसमें उतरता रहा और वह मुझमें ॥
3-2-4
बारिश की बूंदे
Feb 14, 2019
भिगाती रही,
डूबा दिल और रुमाल ।
तुम्हारे जूठे ईश्क को भी बखूबी निभा लेगा वो,
Feb 14, 2019
जूठा खाना, पहनना, बचपन से आदत सी है।
दरवाजे खूले छोड़ दिल के, कभी जल्दी भी सो जाया करो।
Feb 14, 2019
जायदाद नहीं रही पर फ़कीरी के भी अपने फायदे होते हैं ॥
गवाह हूं कि ख़ुदा ने ज़हां अधूरा ही छोड़ दिया है ।
Feb 5, 2019
जिंदगी में कुछ भी मुकम्मल कहां हुआ है हमसे॥
बचपन में माँ चीनी के डब्बे में पैसे रखा करती थी,
शायद दुगने होते थे वहां, या शायद मीठे ।बारिश आई इक दिन तो पता चला,
की नम भी हो जाते है, और आँखों को भी कर देते है ।उस रात सोचता रहा, की पैसे भी नम हो सकते है अगर,
Jan 22, 2019
पैसेवाली गाड़ियों में बारिश पहुँचने की देर हे क्या?
खत आखरी है यह मेरा, जलाकर दफ़्न कर देना।
Jan 22, 2019
चलता हूं, शैतान-ए-मज़हब के लिए जश्न रख लेना॥
अब्बा सच कहते थे कि बेवफा निकलोगे,
मेरे सामने मौत को बांहों में लेकर चल दिए।काश, इतना बताकर जाते कि तुम्हें
Jan 20, 2019
उससे अब्बा ने मिलवाया था क्या?
मेरे लिए, सर्द मौसम का मतलब तुम्हारे जैकेट में मेरा छिप जाना ।
Jan 15, 2019
आज कल ठंड तो होती है, लेकिन मौसम लापता है॥
सीढ़ी पर सीढ़ी रख चढ़ता रहा, वह हटाते रहे सीढ़ियां नीचे से।
Dec 29, 2018
क्या वह चाहते हैं कि मैं गिर जाऊं, या कभी वापस नीचे न जा पाऊं?
कि क्यों ईक टुटे शीशे से घर झांकना चाहते हो।
Dec 10, 2018
चुल्लू भर पानी से दरिये को नापना चाहते हो॥
मुझे समझने की कोशिश भी मत करना,
मैं वह नहीं करता जो मैं चाहता हूं।मैं करता हूं जो करना जरूरी है।
करना तो बहुत कुछ जरूरी है,
Dec 10, 2018
तो मैं करता हूं जो मैं चाहता हूं।
साबित क्यों करें खुद को, कुछ कैद पंछियों के आगे?
Nov 25, 2018
हुनर दिखलाने, जब सारा जहां पड़ा हैं।
घर ऐसी बरसात है कि कितना भी भीग जाओ,
Nov 12, 2018
सूखे रह जाने का गिला रह ही जाता है।
कुछ परिंदे ज़मीन से दूर रहें तो अच्छा है।
Nov 6, 2018
चींटियां शहद में कूद अपनी मर्ज़ी से जाती है॥
चाहे इकलौता गुलाब हो या हो गुलदस्ता, बस एक जरिया है चमन को याद करने का । काश कोई यह बात समझा दे उनको, जो हर लम्हें को तस्वीरों में बांट देते हैं ॥
Nov 3, 2018
मासूम दुआ करते हैं जिंदगी में रंग भरने की तुझसे ।
Oct 22, 2018
जो खुद उब जाने पे यह कमबख्त जहां बना बैठा॥
क्यों हर चीज को पैसों में तोलते हो?
अठन्नी के बचपन के खिलौने, लाखों में भी नहीं मिलते।
Oct 4, 2018
की गई अच्छी बुरी चीजें बस साथ रह जाती है,
लिखी बातों की अगले पन्नो पे भात रह जाती है।मासूम हवा के झोंके वापिस पन्नों को ताजा कर देते हैं,
Oct 1, 2018
और एहसास होता है कि वह अज़ीज़ पन्ने अब, काफी पीले पड़ चुके हैं॥
लगता है किताबों ने भी नए दोस्त बना लिए हैं।
Sep 29, 2018
अब पास जाकर बैठो तो नींद को बुला लेती है॥
निकला हूं ज़ख्मी, नमक के शहर में ।
Sep 28, 2018
प्यास भी लग गई, बाढ़ भी आई है ॥
खानाबदोशों से पूछो कि सफ़र क्या होता है।
Sep 2, 2018
पिंजरे में कूद लिखते हो कि उड़ना तुम्हें पसंद है॥
बस भी करो डराना मुझे, छिन जाने के किस्सों से।
Sep 1, 2018
पसंदीदा खिलौना मैं जानबूझ कर खोया हूं॥
बोझ ज्यादा है कंधों पर, थोड़ा आराम चाहिए,
गनीमत है, मौत का त्योहार ज्यादा दूर नहीं।न जाने क्यों छुट्टियों के इंतजार में रहते हैं, जानते हुए कि काम के हो या फिर छुट्टी के, दिन अपनी जिंदगी के खत्म हो रहे है।
Jul 1, 2018