• जैसे नाव में बैठकर दरिया खोजता रहता हूं

    जैसे नाव में बैठकर दरिया खोजता रहता हूंमैं बस अपने होने का मकसद सोचता रहता हूं याद-ए-माजी मेरे आज को गुमराह करता हैजो है नहीं उस जख्म को खरोंचता रहता हूं अपनी आजादी से कोई तो रिहा करो मुझेमैं पतंग अपनी ही डोर को नोचता रहता हूं बुनियाद-ए-इमारत को मजबूत रहना पड़ता हैवो सोचते है…

  • Unlocking the Secret to True Happiness: Beyond Fleeting Joy

    I was watching https://www.youtube.com/watch?v=G7Pf2Xb5PdA the other day, and in our pursuit of happiness, many of us chase after fleeting pleasures — think new cars, gourmet dinners, or the latest gadgets. But what if I told you that true happiness lies in something deeper? Let’s explore the essential components of happiness and how to cultivate a more fulfilling…

  • जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं

    जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं,मैं अब अपने लफ़्ज़ों में सिर्फ़ बुज़ुर्गों को सुनता हूं। अब लगता है, ज़िंदगी कोई पुरानी कहानी है,जैसे बारिश की बूंदों में सागर का पानी है। कहानियों से परे, अब सिर्फ़ असलियत में मैं जीता हूं,दिल में फिर भी भरोसा है, वाटिका की मैं सीता हूं। हर…

  • Zen Guru : Becoming Wise Without Knowing Answers

    In this post, I’m going to share the story behind the creation of Zen Guru, a simple web page powered by the Llama3 model. It allows users to ask question and receive wise answers inspired by Zen and Hindu philosophy. The idea for this project came from a belief that true wisdom doesn’t rely on…

  • When Aliens Visit: A Tale of Empathy and Misunderstanding

    In the vast expanse of the universe, where countless planets spin in the endless cosmic dance, curiosity drives the exploration of new worlds. Aliens from distant galaxies often visit Earth, intrigued by its diverse ecosystems, complex societies, and the myriad challenges faced by its inhabitants. One day, a fleet of interstellar ships set out from…

  • AI Apps / websites you should know about

    Search AI code editors Image generators Web Automation

  • Notes from Charlie Munger’s commencement speech

    13 ideas from Charlie Munger’s speech

  • फिर याद आई

    वक्त की फिजाएं चली तो फिर याद आईखुद से नजरे मिली तो फिर याद आई कर तो दिए थे सारे किस्से वादे दफनवहां जब कली खिली तो फिर याद आई रिश्तों की डोर उसे ऊंचाई से रोकती थीआंधी पेड़ में ले चली तो फिर याद आई जलता आ रहा हूं बच्चों की आजादी सेशाम समंदर…

  • कैसे

    वक्त की गाड़ी रुकती है पल भर, ठहरोगे कैसेखुश्बू से लम्हें बिखरते है मगर, समेटोगे कैसे ख्वाबों की दुनिया की अंदरूनी हकीकत यही हैघूंघट में मुस्कुराती होगी जो खुशी, ढूंढोगे कैसे बीज में वृक्ष, मोड़ में सफर देख लेते हो अगरहर लम्हें में बसी जिंदगी से, आंख मुंदोगे कैसे जिद्दी है लम्हें, कभी दिल से…

  • खुश तो नहीं हूँ शायद

    खुश तो नहीं हूँ शायद, मगर उदास भी नहींहर दिन नया भी है और कुछ खास भी नहीं हालातों से मजलूम रहती है दो दो ज़िन्दगी अबगुनाह-ए-इश्क़ ऐसा, रिहाई का आगाज़ भी नहीं ढूँढ लेते हैं वो गलियों, चौराहों में भी अपनापनबिखरे है हम ऐसे, अपने शहर पर नाज़ भी नहीं पंछी और घोंसले भी…

  • Pearls of Wisdom: Insights from the Elderly (Ages 70-100)

    In a world often fixated on the hustle and bustle of daily life, the wisdom of the elderly can serve as a guiding light, illuminating the path to a more meaningful existence. Recently, I was going through a vlog series where the host asks individuals aged 70 to 100, about their reflections on life. Here…