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कुछ यूँ ही
Mother’s day का दिन था, कुछ यूँ ही पढ़ रहा था कुछ शेर और अलफ़ाज़, शायद कोई और कह पाया हो जो मैं कभी शब्दों में कह न सका। चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है मुनव्वर राना दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता…