आसान तो नही होगा, मालूम था,
तुम्हें ढूंढना लाखों की भीड़ में,
पर फिर भी, निकलना जरूरी था।
उम्मीद कुछ ज्यादा तो नहीं थी,
बस खयालात थोड़े मिलते हो,
गर ना मिले तो सही, बस कुछ नये हो।
उसके साथ वक्त कुछ ऐसे गुज़रे,
जैसे रेगिस्तान में दिखे बादल,
थोड़ी छांव ना सही, बस थोड़ा भिगो दें।
सारी दुनिया भूल जाऊं, जब पास वो मेरे हो,
बस जिंदगी जीना सीखा दे,
कल रहे ना सही, उसकी याद ज़हन से न जाए।
पहूंच ही गया मैं आखिर,
काश आज ऐसी किताब मिल जाए।
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