ईक और दिन आज बीत गया
ईक और रात आज जाएगी ।
आज फिर दिन शुरू हुआ था दोपहर से
यह बात अब पूरा सप्ताह सताएगी ॥
याद तक नहीं सूरज का ढलना,
जिंदगी बस कट रही है, जी नहीं जा रही ।
न जाने कब शाम मुझे, बेवजह टहलता पायेगी ।
पर मना लेता हूं खुद को हर बार,
सिर्फ ६ दिन की ही तो बात है,
फिर से इतवार की ईक और शाम आएगी ।
पर कभी कभार सोचता हूं,
दिल को दिलासा क्यों है आज के खोने का,
बस, क्योंकी इतवार की ईक और शाम आएगी ?
वैसे मधरात हमेशा से अज़ीज़ रही है मुझे,
पर वह भी कमबख्त, मलाल के साथ आएगी।
और तरस आता है अब तो चांद पर भी,
चांदनी भी नौकरी से कब अपने घर जाएगी॥
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