कभी कभी मैं यह सोचता हूं,
शायद वह कैसे हुआ होगा?
शायद वह बारिश ही होगी,
जब वह ज़ूम उठी होगी,
हरियाली सी छा गई होगी,
मुस्कान भी हल्की सी आ गई होगी।
जब धरती से ही पाया हुआ अम्रत,
धरती ने महिनों बाद वापस पाया होगा,
उन सूखे से महिनों में कैसे अंबर ने
ज़मीं को अपना प्यार जताया होगा ?
किसी एक खत के उत्तर की देरी पर,
क्या होता गर धरती ने उसे ठुकराया होता?
शायद फिर हम भी न होते, तुम भी न होते,
और मैं यह बात भी न लिख पाया होता ।
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