बड़े पापा को, पापा की तरफ से

चलो आज फिर से वही काम करते है,
आज फिर अतीत में चलो साथ चलते है ।
चलो छिप जाते है फिर से मुखोंटो के बीच,
बेवजह एक और दिन बर्बाद करते है ॥

वह रातें याद है जब, मिलने आया करते थे,
न आंखे, न बातें बंद हो पाती थी मेरी,
सोच कर के सुबह न मिल पाएंगे शायद,
हो चुकी सुबह, चलो रात का इंतज़ार करते है।

साईकिल को धक्का देना भी तो बढ़ावा ही होता था,
मूर्ख तो मैं था कि जो पैडल उल्टे मारता रहता था,
छोड़ गए हो तुम, मगर पकड़ लूंगा तुम्हे मैं पक्का,
दौड़ लो चलो, एक नई दौड़ की शुरुआत करते है ॥

इशारों में समझाया करते थे घर का माहौल सब,
बिना शब्द भी खयालात तो समझने ही लगे थे हम,
चलो आज न कोई इशारा, न कोई आवाज़,
समझने की कोशिश इक और बार करते है।

बचपन में भी तो इक दूसरे के काम किया करते थे,
चलो इस बार भी न किसी से फरियाद करते है ।
मैं तुमसे नहीं‌ तो तुम मुझसे ही सही,
खुलकर जीने कि कोशिश सुबह-शाम करते है ॥


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