पापा के ६०वे जन्मदिन पर

तोहफ़ा दूं तो क्या दूं समझ नही आता,
देना जरूरी भी है क्या समझ नही आता,
जिंदगीभर बस लेता रहा हूं जिनसे,
उन्हें मैं क्या ही दूं, पता नही चल पाता॥

शायद मेरा मुझसा ही होना तोहफ़ा है उनका,
शायद मेरा सुकून से जीना ही सुकून है उनका,
शायद मेरा वजूद ही है उनका जीना मेरे ज़रिए,
जी रहा हूं मैं तो उनका वजूद है भी तो कैसे?

न जाने कितने ही दर्द दिए है मैंने जाने अनजाने में,
न जाने कितने ही सपने तोड़े है खुद के सपने सजाने में,
न जाने कैसे मेरे सपनों को खुदका सपना बना लेते है,
और हम हैं जो जन्मदिन का तोहफा तक न सोच पाते है।


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