काम नहीं है अब तो कोई क्यों न इक काम किया जाए।
करते है जो काम, क्यों न उन्हें ही बदनाम किया जाए॥
प्रशासन कुछ भी न कर पाए चलो माना वह वाजिब है।
कमाई की तिहाई देने वालो से क्यों न उम्मीद किया जाए॥
जान का जोख़िम है माना, उसमे भी भला बुराई है कोई क्या ।
सेवा करने ही पढ़े थे ना, क्यों न मुफ़्त में उपचार लिया जाए॥
जला दी चाहे पूरी बस्ती, मगर अब चिनगारी तक न सहा जाए।
क्यों न भूख से तड़प रहे है जो, उनसे ही भुगतान लिया जाए॥
अमृत है अनमोल, बांट उसकी कीमत क्यों कम की जाए।
क्यों न उसे कूड़े में फैंक सबको तड़पने दिया जाए॥
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