अज़ीज़ दोस्त

अज़ीज़ दोस्त हुआ करते थे, अब मिला नहीं जाता,
याद हर दम करते हैं मगर, कॉल किया नहीं जाता।

शायद मसरूफ होंगे, ज़िंदगी में उलझनें कम थोड़ी है?
खुद नई परेशानी बने, खयाल तक सहा नही जाता।

खुदको समझदार समझकर अब रूठते भी नहीं,
अब जो रूठा ही नहीं उसे मनाया नही जाता।

ज्यादा रहा नहीं है कुछ, बस बारिश, नौकरी और सब,
पहले की तरह अब बातों में नया फ़साना नहीं आता।

ज़िंदगी ने समझाया है, मंजिलें बदलती है तजुर्बों के चलते,
कोई मंजिल पूछ ले अगर, रास्ता भी दिखाया नहीं जाता।

मिलोगे अगर तो कहोगे की पहले जैसे तो नहीं रहे तुम ‘हसित’,
हस दूंगा कहकर, अब आईने से भी चेहरा मिलाया नहीं जाता।


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