नन्हे बालक की चिड़िया

मैं बालक नन्हा, नादानी में, चिड़िया लेकर आया हूं।
क्या बतलाउ उस चक्कर में फिर कितना पछताया हूं ॥

उसको भाए ये मन मेरा, मैं उसके गीत पे पगलाया हूं।
आई है मर्ज़ी से अपने, न कुछ समझाया फुसलाया हूं॥

चाहे वक्त की बारिश हो या हो छींटे अनबन के,
मैं हमेशा उसका भीगा छाता बनता आया हूं॥

फिर भी उसके कंठ में है सिर्फ गम का तांडव।
और मैं हर बार पास बैठ उसको रिझाता आया हूं॥

घोंसला उसके सपनों में अब भी दिनरात आता है ।
मैं पागल, अब भी यह मानूं, सपनो में मैं ही समाया हूं॥

उड़ जाना स्वाभाविक था शायद, घोंसले तक रख आया हूं।
शायद उसकी थोड़ी थी बिगड़ी, मैं पूरी ज़िंदगी छोड़ आया हूं॥


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