जो वक्त के बंधनों को तोड़
कभी भी जुबां पर चली आती है
जिसे जानते शायद कई लोग है
मगर जहन में मेरे उतर जाती है
जो खुद चाहे बहर में हो न सही
इक खुशी की लहर ले आती है
जिसे गैरो से छुपाए रखना है मुझे
फिर भी खुद ही बयां हो जाती है
जो वक्त के बंधनों को तोड़
कभी भी जुबां पर चली आती है
जिसे जानते शायद कई लोग है
मगर जहन में मेरे उतर जाती है
जो खुद चाहे बहर में हो न सही
इक खुशी की लहर ले आती है
जिसे गैरो से छुपाए रखना है मुझे
फिर भी खुद ही बयां हो जाती है
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