गंवाई है जिंदगी सारी, अब इक लम्हा नहीं है

गंवाई है जिंदगी सारी, अब इक लम्हा नहीं है

समझाने की आरज़ू तो है, कोई समझा नहीं है

कितना खुश है आसमान, जमीं से जो देखो

चाहे चांद हो या सितारा, कौन तन्हा नहीं है

मिट्टी है अगर आदम, फूल क्यों नही आता

खाद की कमी है ज़हन में या गमला नहीं है

दिल तो करता है नाकामियों को संभाल रखूं

फिर सोचता हूं घर में इक और कमरा नहीं है

कुछ नहीं चाहिए था मगर फिर भी चाहिए था

एहसास बयां करने को कोई जुमला नहीं है

वक्त को कसूरवार कहना मुनासिब नहीं हसित

सच्चाई दिखा देता है वो, कोई हमला नहीं है


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