हर शक्श, किताब ने समझाया था फिर भी
सोने की जाल में फंसे, वाकिफ थे फिर भी
तैरना आता नहीं हमें उनको मालूम था
झील सी आंखों में डूबा देते थे फिर भी
जिंदगी सुलझाने की कुंजी मानते थे
बालों में हाथ उलझा लेते थे फिर भी
हर स्पर्श सांस रोक देता था हमारा
पीठ पर चलाते थे उंगलियां फिर भी
अपना बोझ ढोने की ताकत उनसे थी
कंधे का तकिया बना लेते थे फिर भी
देने को कुछ भी नहीं था बचा मेरे पास
न जाने क्यों साथ निभा रहे थे फिर भी
Leave a Reply