जिंदगी के उस पड़ाव पर आ चुके है चलते चलते
खुद इतना बदल गए है खुद से राब्ता करते करते
पाक पानी भी रंग बदल लेता है नई सी सौबत से
बन जाते है लोग अंधेरा अंधेरों से डरते डरते
मृगजल अक्सर गुमराह कर देता है राहगीर को
बचा लिया है किसी की आदतों ने मरते मरते
किनारा नहीं कर रहा, बस डर रहता है मटकी को
छलक न जाए सब आदर्श नया ज्ञान भरते भरते
दिलासा लेते है सोचकर विदा दी है हंसते चेहरों ने
कौन बिछड़ना चाहता है अपनों से लड़ते लड़ते
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