फिसल रहा है दिल फिर उस गली में, कोई तो रोक लो घुल रही है बारिश की बूंदे फिर नदी में, कोई तो रोक लो
हालातों सी मधुमक्खियां चुरा जाती है खुशियां मेरी ये जिंदगी की खुशबू को फैलने से कोई तो रोक लो
ख्वाब और उम्मीदें गुनगुनाते रहते है दिन भर यहां रात को इन यादों को चिल्लाने से कोई तो रोक लो
कमाए है मुट्ठीभर लम्हें मैने, सैंकड़ों को गंवा कर रेत सा है वक्त, फिसल जाने से कोई तो रोक लो
थक गई है जान मेरी अब पीछा करते करते हसित तितली सी मंजिल का रास्ता अब कोई तो रोक लो
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