सोचता हूं

लिख दूं उन्हें जब भी उनकी याद आती है
बता दूं मेरे कितना पास हो अब भी

बहुत सा सीखा है मैंने जो वक्त साथ बीता
बता दूं मेरी आदतों में खास हो अब भी

यादें मिटाने की कोशिश भला मूर्खता होगी
बता दूं क्या, जिंदगी की बुनियाद हो अब भी

मुकम्मल क्यों नहीं होता वो सब जो सोचा था
क्यों दिमागी हथकड़ियों से न आज़ाद हूं अब भी

छोड़ आया हूं मैं उन्हें अपने आंखों के सामने
फिर क्यों आसपास होने का आभास है अब भी

वो हर चीज, जगह पर जो नाम लिख चुके हो
बता दूं क्या मेरे शून्य में तादाद हो अब भी

कह दूं बेफिक्र रहे मेरी गलतियों के बारे में
बता दूं दोहराता नहीं वो शहजाद हूं अब भी

पता बताए कोई अगर तो ज़रा हाल पूछ लूं क्या
क्यों करूं परेशां, जहां भी हो आबाद हो अब भी


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