उछल रहा था कल तक, अचानक भारी सा क्यों हैं
भरा हुआ है अगर दिल, लग रहा खाली सा क्यों हैं
हर हर्फ में महोब्बत महकती थी उनके कभी
हर अल्फाज आज उनका गाली सा क्यों हैं
समझा लिया है सारी आवाम को अपनी बातों से
मगर फिर भी वो इक शख्स खयाली सा क्यों है
उनसे नज़रे मिलाने की तलप का जादू है शायद
उम्मीद की उम्मीद में हर दिन दिवाली सा क्यों हैं
मिल गया है सपनों से भी बढ़कर बहुत ज्यादा
यह कमबख्त दिल फिर यूं रूदाली सा क्यों हैं
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