वक्त की फिजाएं चली तो फिर याद आई
खुद से नजरे मिली तो फिर याद आई
कर तो दिए थे सारे किस्से वादे दफन
वहां जब कली खिली तो फिर याद आई
रिश्तों की डोर उसे ऊंचाई से रोकती थी
आंधी पेड़ में ले चली तो फिर याद आई
जलता आ रहा हूं बच्चों की आजादी से
शाम समंदर में ढली तो फिर याद आई
सिफर से अनंत के सफर में ‘हसित’
अंत में भी कमी खली तो फिर याद आई
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