जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं

जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं,
मैं अब अपने लफ़्ज़ों में सिर्फ़ बुज़ुर्गों को सुनता हूं।

अब लगता है, ज़िंदगी कोई पुरानी कहानी है,
जैसे बारिश की बूंदों में सागर का पानी है।

कहानियों से परे, अब सिर्फ़ असलियत में मैं जीता हूं,
दिल में फिर भी भरोसा है, वाटिका की मैं सीता हूं।

हर कदम पे जैसे नई पहेली लिखी जा रही है,
समझने की कोशिश ही मानो उलझा रही है।

मासूम लगते हैं वो लोग, जो कहते हैं, “मैं ही सही हूं”,
आयति में भला तुम भी नहीं हो, भला मैं भी नहीं हूं।


Posted

in

,

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.