आदत हो गई है अब,
बिन आदत ज़िंदगी बिताने की।
अब ना रहा है कुछ जिसकी बची तलब है,
समझ आ गया कि दुनिया में सब बेमतलब है।
गिरने से बचाई थी चिड़िया को जिसे बिल्ली खा गई,
खुदको जीने को समझा ही रहा था कि मौत आ गई।
बहुत गरुर है उसे, वक्त समझता है खुदको ही मालिक,
कुछ करू या न करू, करता है सब अपने ही मुताबिक।
पवन की लहरों में भी कायदा ढूंढने लगा हूं शायद,
अब आदतों में भी फायदा ढूंढने लगा हूं शायद ।
आदत हो गई है अब,
बिन आदत ज़िंदगी बिताने की।
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