Category: Hindi

  • नींद

    आज भी आने में देर कर दी तुमने काफ़ी,रात रात भर कहां रहती हो, बताओ,परसों पूरी रात मैंने इंतज़ार में काटी मैंने,मेरा हाल क्या होगा, यह खयाल नहीं आया? भूल गई क्या वो सारी राते,बातें तो नहीं होती थी, फिर भीमुझे कितना अच्छे से जानती थी,शाम का ढलना, तुम्हारा चुपके से नजदीक आ जाना,पीछे से…

  • भिजवा देना

    हेलो… इससे पहले कि तुम गुस्सा हो,हां, मालूम है कॉल करना मना था,शब्दशः याद है अब तक, जो तय हुआ था, “आज से तुम्हारे सारे गिले तुम्हे ही मुबारक,मेरे शिकवे अब सिर्फ मेरे हुए,ना मैं तुम्हें पुकारूंगा, ना तुम मुड़कर देखोगी,सारे तोहफे खैरात में बांटे जाएंगे,उन रेसटोरेंट्स किसी के भी साथ नहीं जाए जाएंगे,पीली हो…

  • धरती

    कभी कभी मैं यह सोचता हूं,शायद वह कैसे हुआ होगा? शायद वह बारिश ही होगी,जब वह ज़ूम उठी होगी,हरियाली सी‌ छा गई होगी,मुस्कान भी हल्की सी आ गई होगी। जब धरती से ही पाया हुआ अम्रत,धरती ने महिनों बाद वापस पाया होगा,उन सूखे से महिनों में कैसे अंबर नेज़मीं को अपना प्यार जताया होगा ?…

  • मछली

    अब खूनी तो मत कहो, उड़ना था उसे,मैंने बस थोड़ी हवा की सैर करवाई थी। बड़ी ही ख़ूबसूरत थी, चंचल भी थी थोड़ी,नामुमकिन नहीं था कुछ भी उसके लिए,बताया था उसने की घूमना पसंद है उसे,और काफी जगह घूम चुकी है पहले से । बस हवा की सैर करना था उस एक बार,काश बता दिया…

  • हमारे लिए थे

    न हम जानते थे, न वह जान पाऐ,जो लम्हे कहीं पर हमारे लिए थे । है दिल कुछ गिला‌ सा, चंद बुंदों के खातिर,और बारिश के मौसम हमारे लिए थे । कलम रुक गई है, या अल्फाज़ छुप गए हैं,और जज़्बातों के सैलाब हमारे लिए थे । शायद गज़लें भी फिर, बहर में आ जाती,मीठी…

  • कोई गुब्बारे सी

    पानी में बुलबुलों के फव्वारे सी,ज़िंदगी मेरी मानो कोई गुब्बारे सी। किसकी सांसोंसे ज़िंदा हूं, जानता नहीं,कैसे, क्यों और कब तक, यह भी पता नहीं,वजूद भूले कोई रेगिस्तान के बंजारे सी,ज़िंदगी मेरी मानो कोई गुब्बारे सी॥ ज़मीं पर रहकर आसमान कैसे छू लूंगा?आसमां में अकेला कब तक रह लूंगा?बारिश में, ज़मीं में दब गए अंगारे…

  • अखबार सा

    कभी लगता है जग मैं मुझे छोड़सब ज्ञानी है, दुनियादारी समझते हैं,शायद हर रोज़ अखबार पढ़ते है । पर अखबार के बारे में सोचो तो,ज्ञान का भंडार, दुनिया का आईना,पर जिंदगी मानो सिर्फ ईक दिन की,कल उसकी जगह नया अखबार लेगा । और बस कहीं कोने में वह बैठा मिलेगा,कोई एक मामूली कागज़ की तरह…

  • ईक और दिन आज बीत गया

    ईक और दिन आज बीत गयाईक और रात आज जाएगी ।आज फिर दिन शुरू हुआ था दोपहर सेयह बात अब पूरा सप्ताह सताएगी ॥ याद तक नहीं सूरज का ढलना,जिंदगी बस कट रही है, जी नहीं जा रही ।न जाने कब शाम मुझे, बेवजह टहलता पायेगी । पर मना लेता हूं खुद को हर बार,सिर्फ…

  • कहानियां

    वैसे तो इधर-उधर हर जगह देखा है,कुछ कहानियों को मैंने बेमकां देखा है ।चिल्लाहट शुरू रहती है हमेशा उनकी,पर न सुनो तो उन्हें बेजुबान देखा है ॥ भीड़ में टकराती रहती है वैसे सब हररोज,पर बहुत कम कहानियों को समान होते देखा है।वैसे तो वजूद क्या भीड़ में अकेली कहानी का,पर अफसाने से सब का…

  • बिछड़ने से ज़रा पहले

    बिछड़ने से ज़रा पहलेईक बार मश्क ही कर लेते, वैसे ही जैसे हर बार किया करते थे। कि बाहर निकले गर तो करना क्या है, मैं मामा का बेटा बनूंगा या तुम चचेरी बहन। दीवार कूदने में लगी चोट को ढकना कैसे हैं, और पता चल जाने पर कहना क्या है॥ तुम्हारे घर पहली बार…