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  • वह भी तो मैं हूं

    काग़ज़ भी मैं, कलम भी तो मैं हूं।डर रहा है‌ जो, मैं हूं, डराता भी मैं हूं॥ आंखों देखी, कानों सूनी, अनबनी बातों कामंदिर भी मैं, कूड़ेदां भी तो मैं हूं ॥ बस कुछ चंद लकीरों के जरिए,ज़िंदगियां जी जाता साहिर भी मैं हूं॥ सब निगल जाता समंदर भी मैं,कश्ती भी मैं, मुसाफिर भी मैं…

  • चश्म-ए- बददूर

    भाई के बारे में बताऊं तो… कद थोड़ा छोटा, रंग ज़रा सा सांवला था,दूर की नजर कमजोर थी, चश्मा लगाता था। मम्मी ना हो तो शैतान, हो तो बेचारा बन जाता था,लड़ाई हो जब भी, में गेंद, वह बॆट बन जाता था। वैसे तो वह हररोज कोई नई शामत ले आता था,कभी गब्बर की खिड़की,…

  • खोज

    आसान तो नही होगा, मालूम था,तुम्हें ढूंढना लाखों की भीड़ में,पर फिर भी, निकलना जरूरी था। उम्मीद कुछ ज्यादा तो नहीं थी, बस खयालात थोड़े मिलते हो,गर ना मिले तो सही, बस कुछ नये हो। उसके साथ वक्त कुछ ऐसे गुज़रे,जैसे रेगिस्तान में दिखे बादल,थोड़ी छांव ना सही, बस थोड़ा भिगो दें। सारी दुनिया भूल जाऊं,…

  • दुनिया : खेल का मैदान

    वो खेल का मैदान जो , न जाने कितने खेलो का जन्मदाता था,अनजाना सा बच्चा आया है, उस भीड़ में खो जाने को अकेला । भाँती भाँती के खेल और भाँती भाँती के लोग,कोई अच्छा, कोई बुरा, पर गया घुल उनमे वह । गिरना, गिराना, फसाद होते रहते हे पल दो पल,रोना, हँसना, जितना, हारना…

  • खो गया हूं मैं

    ये राह ले जायेगी मुझे मंझिल की ओरउसी राह पर हूँ, फिर भी खो गया हूं मैं || कई है आगे,पीछे, ओर कुछ साथमें भीअकेला नही हूँ, फिर भी खो गया हूं मैं || इस अँधेरे रास्ते को जानने के लिए खुदकोजला रखा है, फिर भी खो गया हूं मैं || वक्त चल रहा हैं,…

  • लिखने चला हूं – कलम

    अभी पिछले पन्नें की स्याही तो सूखी नहीं है,पर एक और पन्ना लिखने चला हूँ। चाहें मैं लिखूँ वही सब,जो पहले भी लिखा है,या फिर कुछ नया।क्या लिखने वाला हूँ, पता नहीं,पर एक और पन्ना लिखने चला हूँ || हर एक अक्षर है मेरे बढ़ते कदम मौत की ओर,फिर भी ख्वाहिश है दिल में और…