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जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं
जैसे अपनी पीढ़ी से पिछली पीढ़ी को बुनता हूं,मैं अब अपने लफ़्ज़ों में सिर्फ़ बुज़ुर्गों को सुनता हूं। अब लगता है, ज़िंदगी कोई पुरानी कहानी है,जैसे बारिश की बूंदों में सागर का पानी है। कहानियों से परे, अब सिर्फ़ असलियत में मैं जीता हूं,दिल में फिर भी भरोसा है, वाटिका की मैं सीता हूं। हर…
फिर याद आई
वक्त की फिजाएं चली तो फिर याद आईखुद से नजरे मिली तो फिर याद आई कर तो दिए थे सारे किस्से वादे दफनवहां जब कली खिली तो फिर याद आई रिश्तों की डोर उसे ऊंचाई से रोकती थीआंधी पेड़ में ले चली तो फिर याद आई जलता आ रहा हूं बच्चों की आजादी सेशाम समंदर…
कैसे
वक्त की गाड़ी रुकती है पल भर, ठहरोगे कैसेखुश्बू से लम्हें बिखरते है मगर, समेटोगे कैसे ख्वाबों की दुनिया की अंदरूनी हकीकत यही हैघूंघट में मुस्कुराती होगी जो खुशी, ढूंढोगे कैसे बीज में वृक्ष, मोड़ में सफर देख लेते हो अगरहर लम्हें में बसी जिंदगी से, आंख मुंदोगे कैसे जिद्दी है लम्हें, कभी दिल से…
खुश तो नहीं हूँ शायद
खुश तो नहीं हूँ शायद, मगर उदास भी नहींहर दिन नया भी है और कुछ खास भी नहीं हालातों से मजलूम रहती है दो दो ज़िन्दगी अबगुनाह-ए-इश्क़ ऐसा, रिहाई का आगाज़ भी नहीं ढूँढ लेते हैं वो गलियों, चौराहों में भी अपनापनबिखरे है हम ऐसे, अपने शहर पर नाज़ भी नहीं पंछी और घोंसले भी…
जैसे नाव में बैठकर दरिया खोजता रहता हूं
जैसे नाव में बैठकर दरिया खोजता रहता हूंमैं बस अपने होने का मकसद सोचता रहता हूं याद-ए-माजी मेरे आज को गुमराह करता हैजो है नहीं उस जख्म को खरोंचता रहता हूं अपनी आजादी से कोई तो रिहा करो मुझेमैं पतंग अपनी ही डोर को नोचता रहता हूं बुनियाद-ए-इमारत को मजबूत रहना पड़ता हैवो सोचते है…
ज़रूरी था
होठ फड़फड़ाते रहे मगर कहना ज़रूरी थादबी उस बुंद का आंख से बहना ज़रूरी था बहुत उम्मीद लगाए बैठे थे ज़माने से बचपन मेंअसलियत जानने घर से निकलना ज़रूरी था ऐसा नहीं है कि हार अब रुला नहीं पाती मुझेजानता हूं मूरत का हर घाव सहना ज़रूरी था गम की गैर मौजूदगी में खुशी मायूस…
वक्त में खुद को खोया है, या खुद को पाता जाता हूं
वक्त में खुद को खोया है, या खुद को पाता जाता हूंअब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं सुबह की ठंडी लहर हो या कंधे पे नाचता बस्ता होहंसने के कारण हो लाखों, दाम खुशी का सस्ता होखिड़की पर बैठी बूंद को मैं ज़हन में खोया पाता हूंअब मैं भी…
वक्त में वापिस जाऊं तो
वक्त में वापिस जाऊं तो इतना खुद को समझाना हैमकसद कुछ ढूँढना नहीं, खुद ही कुछ बन जाना है गहराई में दबा हुआ बीज खुद को समझना चाहेगाटूटेगा अंदर से लेकिन फिर इक पौधा बन जाएगा सर्द की धूप जो बहलाती है, गर्मी में दर्द दे जाती हैधूप से रिश्ता समझेगा जब खुदको भीगा पाएगा…
जिंदगी के उस पड़ाव पर आ चुके है चलते चलते
जिंदगी के उस पड़ाव पर आ चुके है चलते चलतेखुद इतना बदल गए है खुद से राब्ता करते करते पाक पानी भी रंग बदल लेता है नई सी सौबत सेबन जाते है लोग अंधेरा अंधेरों से डरते डरते मृगजल अक्सर गुमराह कर देता है राहगीर कोबचा लिया है किसी की आदतों ने मरते मरते किनारा…
जानता था
मुफलिसी में इज़्ज़त कमाना जानता थावादा किए बिना निभाना जानता था अधूरा छोड़ देता था सब कुछ मगरअपने काम से दिल लगाना जानता था परेशानी भी परेशान रहती थी उससेवो हर मिसाल हर फ़साना जानता था हकीकत को अपना सपना मानता थाबचपन से क्या सच क्या झूठ जानता था चल जाना था वक्त को आगे…