रात

जल गए सारे, जो भी मैं धूप में सेक रहा था,
सपने जो कल अंधेरे में हमने देख रखें थे।
मैं कबसे अपने क़िस्मत को कोसता सोच रहा हूं,
तुम भी चुपके से साथ में मेरे बैठ चुकी हो।

तुम भी तो अपने सूरज को देखकर छुप जाती हो,
मैं भी अपने सच से मुंह छिपाता फिर रहा हूं,
मैंने अपने सिवा सबके ही मसले सुलझाएं है,
तुमने भी तो कितनों के दिल मिलवाएं हैं ।

आज भी बिल्कुल मानो कल के जैसा ही है,
तुम भी हो तन्हा, मैं भी हूं तन्हा,
और तन्हाई में फिर से साथ हम दोनों ।

मगर मुझे तुमसे भी इक खफा है,
मेरी तन्हाई में सिर्फ तुम हो लेकिन
तुम्हारी तन्हाई में जग है आधा,
इसका मतलब क्या तुम भी बस बेवफ़ा हो?


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