कभी कभी सोचता हूं, छोड़ दूं

कभी कभी सोचता हूं, छोड़ दूं

छोड़ दूं वो आखरी कील कोने की,
जिस के बिना मेज़ है पूरा और नहीं भी

मान लूं गलतियां सारी लेकिन छोड़ दूं
इक अहम, जिसे अपना जुनून कह सकूं

छोड़ दूं कुछ जिंदगी के अरमान बाकी,
अगली पीढ़ी के गर्व करने खातिर ही सही

जीत लूं मैं पूरी दुनिया लेकिन छोड़ दूं
इक कोना, घर, जिसे दुनिया कह सकूं


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