ज़रूरी था

होठ फड़फड़ाते रहे मगर कहना ज़रूरी था
दबी उस बुंद का आंख से बहना ज़रूरी था

बहुत उम्मीद लगाए बैठे थे ज़माने से बचपन में
असलियत जानने घर से निकलना ज़रूरी था

ऐसा नहीं है कि हार अब रुला नहीं पाती मुझे
जानता हूं मूरत का हर घाव सहना ज़रूरी था

गम की गैर मौजूदगी में खुशी मायूस रहती थी
गनीमत है उन हालातों का बदलना ज़रूरी था

खुद को दरिया-ए-अय्याम समझ रहा था हसित
मिट्टी के ज़र्फ का आइने से मिलना ज़रूरी था


Posted

in

,

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *