वक्त में खुद को खोया है, या खुद को पाता जाता हूं

वक्त में खुद को खोया है, या खुद को पाता जाता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं

सुबह की ठंडी लहर हो या कंधे पे नाचता बस्ता हो
हंसने के कारण हो लाखों, दाम खुशी का सस्ता हो
खिड़की पर बैठी बूंद को मैं ज़हन में खोया पाता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं

दोस्त जिनको मिलने पर, हर सवाल बच्चा लगता था
सच्चाई झूठी लगती है, हर ख़्वाब सच्चा लगता था
पिछली पीढ़ी से सीखा जो, वही तो मैं दोहराता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं

यादें भी अब उतनी याद नहीं, ऊपर से वक्त का साथ नहीं
मिलते हैं अब जब कभी कभी, पहले जैसी कुछ बात नहीं
जिन गीत से होता था हैरान, अब खुद उन्हें मैं गाता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं

आदत उजालों की है लेकिन अब अंधेरा सह लेता है
ठोकर खाने पे रोता लड़का आंधियों से लड़ लेता है
जिनके कंधों पर खेला था, कंधा उनका बन जाता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं

बहना तो उसका काम है, वक्त तो यूं ही बदनाम है
पूछ ले कोई जो अगर, कह दो मुझको आराम है
खफा रहता था पहले लेकिन अब समझ मैं पाता हूं
अब मैं भी वक्त के जैसा हूं, चुपके से आता जाता हूं


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