शायद यह खुशनसीबी ही है, गुमनाम हूं

शायद यह खुशनसीबी ही है, गुमनाम हूं
सिर्फ अपने पसंदीदा लोगों का इनाम हूं

लोग सब जानेंगे, पहचान पाएंगे नहीं
मिलेंगे खुशी से मगर काम आएंगे नहीं

इक आवाम होगी जो जलती होगी
इस खोज में कि कब गलती होगी

हां, सपने सब सच अपने हो जाएंगे
अधूरा ख्वाब भी किसी के बन जाएंगे

अभी अपनों के लिए वक्त बेशुमार है
आज, नहीं कोई भी हमसे बेजार है

जितनों का हूं, उन का वफादार हूं
अपनी छोटी सी बस्ती का मैं यार हूं


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