मुफलिसी में इज़्ज़त कमाना जानता था
वादा किए बिना निभाना जानता था
अधूरा छोड़ देता था सब कुछ मगर
अपने काम से दिल लगाना जानता था
परेशानी भी परेशान रहती थी उससे
वो हर मिसाल हर फ़साना जानता था
हकीकत को अपना सपना मानता था
बचपन से क्या सच क्या झूठ जानता था
चल जाना था वक्त को आगे शायद
खुद गिरकर उसको हंसाना जानता था
नाम तक उसका कर जाता था गुमराह
वो सिर्फ रुलाने का बहाना जानता था
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